वेट लॉस डायट

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मानवीय इतिहास में डायबिटीज का सबसे पहला जिक्र लगभग 4000 साल पहले पाया जाता है, लेकिन आज से लगभग एक 100 साल पहले तक इस बीमारी का कोई इलाज अवेलेबल नहीं था.

जिस तरह का ट्रीटमेंट आज डायबिटीज के पेशेंट को आसानी से अवेलेबल उपलब्ध होता है वह सिर्फ लगभग 80 साल पुराना है.

लेकिन इस ट्रीटमेंट के अवेलेबल होने के बावजूद इस बीमारी का खतरा बढ़ता ही जा रहा है, और इसका एक बड़ा कारण यह है कि इस ट्रीटमेंट से – इस एक्सटर्नल इंसुलिन के doses लेने से – अधिकतर डायबिटीज पेशेंट की जान तो बच जाती है, लेकिन वे इस बीमारी का शिकार अक्सर अपनी मृत्यु होने तक बने रहते हैं.

दूसरे शब्दों में इंसुलिन लेने से इस बीमारी पर थोड़ी बहुत रोक तो लग जाती है लेकिन इस बीमारी से अंत तक अधिकतर लोगों को कोई छुटकारा नहीं मिलता.

उसके अलावा एक्स्ट्रा इन्सुलिन लेने की वजह से बहुत सारी अन्य बीमारियां पैदा हो जाती हैं. अधिकतर लोग इन्सुलिन रेजिस्टेंस का शिकार हो जाते हैं जो आगे चलकर टाइप टू डायबिटीज और ओबेसिटी या मोरबिड ओबेसिटी (morbid obesity) का रूप ले लेती है

और एक बार जब मोटापे की मुसीबत शुरू हो जाती है तो उससे जुड़ी हुई अन्य कई बीमारियों के रास्ते खुल जाते हैं.

यहां हम ब्लड ग्लूकोस कंट्रोल और टाइप टू डायबिटीज और ओबेसिटी से संबंधित कुछ खाने पीने की शंकाओं को दूर करने का प्रयास करेंगे.

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काकडी या खीरा प्रकृति की सबसे बेहतरीन gifts में से एक है. यह सब्जी पूरी दुनिया में विख्यात है और हमारा देश भी कोई अपवाद नहीं है. हमारे देश में गर्मी के दिनों में इसकी खपत काफी बढ़ जाती है, और वह इसलिए क्योंकि ककड़ी में पानी की अधिकता होती है.

काकडी का 96% वजन वॉटर कंटेंट की वजह से होता है, और इसीलिए उन में कैलोरी की मात्रा भी बहुत कम होती है. एक ककड़ी जिसका वजन लगभग 300 ग्राम होता है आपको सिर्फ 45 कैलोरीज प्रदान करती है.

अपने बेहतरीन स्वाद की वजह से ककड़ी न सिर्फ कच्ची खाई जाती हैं बल्कि सलाद में भी मिश्रित की जाती हैं, और हालांकि काकडी का स्वाद कुछ मीठा होता है लेकिन उन में कार्बोहाइड्रेट की प्रचुरता नहीं होती, और इसलिए वे डायबिटिक लोगों के लिए कोई विशेष खतरा पैदा नहीं करती.

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और इन खूबियों के अलावा वे हमें कई माइक्रोन्यूट्रिएंट्स भी प्रदान करती हैं. विटामिन K, पोटेशियम, beta-carotene, फोलेट, जिंक, मैग्निशियम, और choline जैसे माइक्रोन्यूट्रिएंट्स हमें उनके द्वारा प्राप्त होते हैं.

हालांकि इन सब माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की मात्रा काफी कम होती है, लेकिन फिर भी उनका हमारी सेहत पर कुछ अच्छा प्रभाव पड़ता ही है.

इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि ककड़ी का उत्पादन काफी प्रचुर मात्रा में होता है, और उसके चलते वह लगभग पूरे वर्ष तक काफी सस्ते या रीजनेबल दाम पर उपलब्ध उपलब्ध होती हैं, और इन सब खूबियों के चलते वह टाइप वन या टाइप टू या जेस्टेशनल डायबिटीज के मरीजों के लिए काफी सुरक्षित मानी जा सकती हैं

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इन्हीं सब खूबियों की वजह से मैं खुद भी ककड़ी या खीरे का बहुत बड़ा फैन हूं, और वे मेरे दैनिक जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है.

मैं उन्हें भोजन के अलावा और भी कई सिचुएशंस में इस्तेमाल करता हूं. कई बार जब मुझे किसी जगह पर पीने के लिए सही पानी नहीं मिलता तो मैं उसकी कमी ककड़ी खाकर पूरी करता हूं. क्योंकि उनमें 96% पानी होता है

मैं उनका उपयोग जंक फूड के द्वारा मेरे ब्लड ग्लूकोस पर छोड़े गए प्रभाव को कम करने के लिए भी करता हूं. कई बार जब सोशल प्रेशर की वजह से मुझे कुछ सिचुएशंस में जंक फूड खाने पर मजबूर होना पड़ता है, तो मैं कोशिश करता हूं कि उस जंक फूड के खाने से पहले या तुरंत बाद में मैं एकदो ककड़ी खा लूं, जिसके फाइबर की वजह से उस जंक फूड का प्रभाव मेरे ब्लड ग्लूकोस लेवल पर कुछ कम पड़े

एक और सिचुएशन में मैं ककड़ी का काफी इस्तेमाल करता हूं और वह है कि जब मुझे भूख न होने के बावजूद कुछ मंचिंग करने पर या कुछ जवानी पर दिल करता है कुछ चबाने का दिल करता है.

अक्सर कंप्यूटर के सामने लंबे समय तक काम करते करते यदि मैं थोड़ा बहुत बोर हो जाता हूं तो मुझे इच्छा होती है कि मैं कुछ चबाऊँ या munch करूँ, और ऐसी हालत में में ककड़ी का इस्तेमाल करता हूं, क्योंकि उसमें ज़्यादा कैलोरीज नहीं होती और सिर्फ पानी होता है.

और ऐसा करने वाला मैं दुनिया में अकेला व्यक्ति नहीं हूं; ऐसे कई लोग हैं जो मंचिंग के लिए ककड़ी ककड़ी जैसी अन्य वेजिटेबल का इस्तेमाल करते हैं.

अमेरिकन न्यूरोसाइंटिस्ट Andrew Huberman का कहना है कि वे सैलरी स्टिक्स (celery sticks) को चबाते रहते हैं.

लेकिन ऐसी हालत में मेरा पसंदीदा है: ककड़ी.

ककड़ी में बहुत ज्यादा फाइबर नहीं होता. एक पाव (250 ग्राम) ककड़ी में लगभग 2 ग्राम फाइबर होता है, लेकिन इसका भी हमारे सेहत पर अच्छा प्रभाव पड़ता है. लेटेस्ट रिसर्च हमें बताती है कि हम फाइबर का उपयोग जितना ज्यादा से ज्यादा कर सके वह हमारी सेहत के लिए बेहतर ही होता है, और ककड़ी हमें फाइबर का एक और सोर्स प्रदान करती हैं.

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भारतीय कुकिंग हैबिट्स के बारे में जो सबसे चौंका देने वाली बात है वह यह कि आज से लगभग 700 साल पहले हमारे देश में टमाटर का उपयोग नहीं किया जाता था. उसके पहले टमाटर हमारे देश में नहीं उगाए जाते थे, और यह दरअसल एक कॉलोनियल गिफ्ट थी.

टोमेटो का असली उद्गम स्थल साउथ अमेरिका को माना जाता है.

“टोमेटो” शब्द की उत्पत्ति के पीछे भी Mexican dialect के वह शब्द हैं जिनका मतलब है “swollen fruit” या“fat water” या“fat thing”.

अन्य वर्ड ओरिजंस ऐसे शब्दों की तरफ इशारा करते हैं जिनका मतलब लिटरली होता “plump thing with navel” या “fat water with navel”.

ऐसा माना जाता है कि टोमेटो का इंट्रोडक्शन हमारे देश में पुर्तगाली एक्सप्लॉरर्स और ट्रेडर्स द्वारा किया गया था. उस जमाने में पुर्तगाली ट्रेडर्स के दो मुख्य ट्रेडर्स की दो मुख्य colonies थीं; एक थी बंगाल में बांदेल (Bandel), और दूसरी गोवा.

जब टमाटर को बंगाल में इंट्रोड्यूस किया गया था तो वहां के लोग इस नई वेजिटेबल को देखकर काफी आश्चर्यचकित थे, लेकिन उन्हें इसका टेस्ट पसंद आया और क्योंकि टमाटर का आकार प्रकार कुछकुछ बैंगन से मिलताजुलता था, इसलिए बंगाल के लोगों ने इसे अपना एक नया नाम दिया विलायती बैंगनया “foreign eggplant”.

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तब से हमारे देश के अधिकांश रसोई घरों पर टमाटर का कब्जा हो गया है. आज हमारे देश में ऐसे बहुत कम किचन हैं जहां पर टमाटर का किसी न किसी रूप में डेली लाइफ में इस्तेमाल नहीं किया जाता.

हमारा देश curries के लिए विख्यात है, और अधिकतर curries में कुछ ना कुछ tomato content जरूर होता है. इसके अलावा टमाटर सलाद का भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है, और हालांकि हमारे देश में टोमेटो सूप का बहुत ज्यादा प्रचलन नहीं है, लेकिन फिर भी हम टमाटर का इस्तेमाल अपने घरों में बनाए जाने वाली लगभग हर दाल, हर करी, और हर सब्जी की रेसिपी में करते हैं

और इस उपयोग के हम भारतीयों को अच्छे नतीजे भी मिलते हैं, क्योंकि टोमेटो लाइकोपीन (lycopene) नामक कंपाउंड का एक बहुत ही महत्वपूर्ण सोर्स है. उसके अलावा उनमें विटामिन सी और पोटेशियम की भी बहुतायत होती है. और सोने पर सुहागा यह है कि काफी स्वादिष्ट होने के बावजूद उनमें ज्यादा कार्बोहाइड्रेट नहीं होते

टमाटर में पानी की भी काफी बड़ी मात्रा होती है और उसकी वजह से उनमें कैलोरी कम होती हैं, और उसकी वजह से वे डायबिटीज और ओबेसिटी के शिकार लोगों के लिए काफी संतुलित फूड प्रोडक्ट या भोज्य पदार्थ माने जा सकते हैं.

टमाटरों की एक और विशेषता है और वह यह कि जब उन्हें पकाया जाता है तो उनके न्यूट्रिएंट्स में बहुत ज्यादा गिरावट नहीं आती. अधिकतर नुट्रिएंट्स बरकरार रहते हैं

और इन्हीं सब खूबियों के चलते वे मानव समाज का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.

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टमाटर न सिर्फ हमें न्यूट्रिएंट्स प्रदान करते हैं बल्कि वह हमें कई बीमारियों से बचाने में भी सहायक सिद्ध होते हैं

EAT TO BEAT DISEASE के लेखक William Li का कहना है के 30 से ज्यादा स्टडीज ने टमाटर के सेवन के प्रोटेक्टिव इफेक्ट्स को दर्शाया है.

एक स्टडी में यह पाया गया के सिर्फ दो से तीन कप टोमेटो सॉस हर हफ्ते खाने से प्रोस्टेट कैंसर होने का खतरा लगभग 30% कम हो गया.

एक अन्य स्टडी में पाया गया के जिन प्रोस्टेट कैंसर पेशेंट्स को लगातार टमाटर सेवन करने की आदत थी उनके कैंसर कम एग्रेसिव थे.

और इन्हीं संभावनाओं के चलते William Li न सिर्फ ज्यादा टमाटर खाने की सलाह देते हैं, बल्कि वे विभिन्न प्रकारों के अलगअलग टमाटर खाने की सलाह भी देते हैं. उनका कहना है कि पूरी दुनिया में टमाटर के लगभग 1000 cultivars पाए जाते हैं और सब में लाइकोपीन की मात्रा अलगअलग होती है, सबका nutrient profile अलग होता है.

Which Indian vegetables are good for diabetes?

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इस सवाल का सबसे सीधा सच्चा जवाब यही है कि अधिकतर भारतीय सब्जियां डायबिटीज पेशेंट्स के लिए सुरक्षित होती हैं. इनमें से कई सब्जियां बहुत ही महत्वपूर्ण और बहुत ही जरूरी हैं. गोभी, पत्ता गोभी, और ब्रोकोली जैसी Cruciferous vegetables बहुत ही लाभदायक होती हैं; इन सब्जियों में फाइबर तो होता ही है, लेकिन उसके अलावा उनमें Sulphorphane जैसे anti-aging molecules भी पाए जाते हैं.

इसके अलावा इन सब्जियों में पाए जाने वाले डाइटरी फाइबर से हमारे gut health में इंप्रूवमेंट होता है. और उससे हमारे इम्यून सिस्टम में.

न्यूयॉर्क टाइम्स बेस्ट सेलर Fiber Fuelled के लेखक Dr. Will Bulsiewicz का कहना है कि हमारे शरीर का लगभग 70% इम्यून सिस्टम हमारे gut में उपस्थित रहता है, और इसलिए हेल्दी गट माइक्रोबायोटा का सीधा सीधा मतलब है हेल्दी और स्ट्रांग इम्यून सिस्टम. आप दोनों को अलग नहीं कर सकते. यदि एक को नुकसान पहुंचता है तो दूसरा ऑटोमेटिकली प्रभावित होता है.

Dr. Will Bulsiewicz quote about immune system and its relationship with gut microbiome. Fiber Fuelled

As can be understood most Indian vegetables support a health gut.

Tomato good for diabetes?

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यह बात सही अब यह बात सही है कि टमेटोस में कुछ मात्रा में फ्रुक्टोज (fructose) नाम के शुगर मॉलिक्यूल पाए जाते हैं, और इन्हीं शुगर मॉलिक्यूल्स की वजह से हमें टमाटर का स्वाद कुछ मीठा लगता है, लेकिन यदि कोई डायबिटिक पेशेंट टमाटर का उपयोग लिमिटेड मात्रा में करता है तो उसे टमाटर से कोई विशेष खतरा नहीं होना चाहिए.

अब यदि किसी डायबिटिक पेशेंट का रेंडम ब्लड ग्लूकोस लेवल 350 mg/dL के ऊपर है तो इस तरह के डायबिटिक पेशेंट को नेचुरली टमाटर को अवॉइड करना चाहिए, लेकिन नॉर्मल डायबिटिक पेशेंट्स और pre-diabetic patients टमाटर का उपयोग आसानी से कर सकते हैं.

और जहां टमाटर में कुछ मात्रा में फ्रुक्टोज पाया जाता है वहीं उनमें कई बहुत ही विशेष माइक्रोन्यूट्रिएंट्स और विटामिंस भी उपलब्ध होते हैं. तो यदि हम टमाटर को फ्रुक्टोज (fructose) की वजह से खाना बंद कर देंगे तो हमें वह माइक्रोन्यूट्रिएंट्स और विटामिंस भी प्राप्त नहीं होंगे.

टमाटर में विटामिन सी काफी मात्रा में पाया जाता है; सिर्फ एक सौ ग्राम टमाटर से आपको लगभग 22% विटामिन सी (RDA) की प्राप्ति होती है. इसके अलावा टमाटर हमें काफी प्रचुर मात्रा में पोटेशियम भी प्रदान करते हैं. पोटेशियम हमारे शारीरिक प्रक्रियाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण मिनरल है, और हमें प्रतिदिन लगभग 4700 मिलीग्राम पोटैशियम के सेवन की जरूरत होती है.

टमाटर की जो सबसे मुख्य विशेषता है वह यह कि वे किसी भी रेसिपी में बड़े ही आसानी से शामिल किए जा सकते हैं, और अच्छी बात यह है कि पकने के बावजूद टमाटर में पाए जाने वाला न्यूट्रिएंट्स काफी हद तक बरकरार रहते हैं.

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अब मानव इतिहास में डायबिटीज का जो सबसे पहला उल्लेख आता है वह लगभग 4000 वर्ष पुराना है, लेकिन इस बीमारी के इतना पुराना होने के बावजूद इसका कोई सही ट्रीटमेंट आज से लगभग 75 वर्ष पहले तक उपलब्ध नहीं था, और इसीलिए पिछले हजारों वर्षों के दौरान वैद्य और हकीम ओने तरह तरह की सब्जियों फलों और पुरुष के द्वारा इस बीमारी का इलाज करने की कोशिश की है.

और इसी कार्यवाही का नतीजा है कि आज ऐसे कई फूड प्रोडक्ट के नाम अक्सर लिए जाते हैं जिन्हें डायबिटीज का उपचार करने में सहयोगी माना जाता है. इस तरह के फूड प्रोडक्ट की लिस्ट में जो सबसे पहला नाम आता है वह है करेला या bitter gourd.

इसी लिस्ट में अन्य नाम हैं लौकी (ash gourd) और मेथी सीड्स (fenugreek seeds). इन्हीं कारणों की वजह से आज कई शहरों में Joggers’ Parks के आसपास लौकी और करेले का जूस उपलब्ध होता है.

इसी तरह से मेथी सीड्स मेथी के बीज को भी ब्लड शुगर कम करने वाला भोज्य पदार्थ माना जाता है. कुछ लोग उन्हें रात को पानी में भिगोकर रखते हैं और सुबह सवेरे उन्हें कच्चा चबाकर खाते हैं, और कई लोग उस पानी को पी लेते हैं जिसमें उन्हें रात को भिगोया गया था.

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मेथी की सब्जी और ग्वार फली का स्वाद भी कड़वा होता है और इसी के चलते इनको भी ब्लड शुगर कम करने वाली सब्जियों के रूप में देखा और जाना जाता है. इसी तरह से आंवला और जामुन भी डायबिटीज के पेशेंट में काफी लोकप्रिय हैं इसके अलावा कई हरी सब्जियां (leafy green vegetables) भी डायबिटीज के लिए फायदेमंद मानी जाती हैं.

यहां हमारे देश में हमें तरहतरह की leafy green vegetables लगभग पूरा साल उपलब्ध होती हैं. मेथी और पालक तो बहुत ही कॉमनली अवेलेबल सब्जियां हैं लेकिन इनके अलावा चवली, मूली के पत्ते, सरसों की सब्जी, बीटरूट के पत्ते, बथुआ या चील भाजी, और अंबाटी या अम्बट चूका (Indian sorrel) सीजनल शेड्यूल पर उपलब्ध होती हैं.

इसके अलावा और कई दर्जनों लोकल और रीजनल सब्जियां भी हैं जो एक सीमित दायरे के लोगों को ही अवेलेबल होती हैं.

कहने की जरूरत नहीं है कि यह सब सब्जियां टाइप वन डायबिटीज, टाइप 2 डायबिटीज, और जेस्टेशनल डायबिटीज के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद होती हैं.

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कई वेबसाइट्स claim करती हैं कि करेले के जूस का एक गिलास पीते पीने से डायबिटीज पेशेंट्स अपनी डायबिटीज की मेडिसिंस की मात्रा में कमी ला सकते हैं. कुछ लोग मानते हैं कि करेला मनुष्य के शरीर में पाई जाने वाली लगभग हर बीमारी को सही कर सकता है.

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और हालांकि हमारे देश में ऐसे हजारों एक्सपर्ट्स और वेबसाइट्स हैं जो करेला या bitter gourd के फायदे गिनाते नहीं थकते, लेकिन सच तो यह है कि इस तरह के दावों के पीछे कोई साइंटिफिक वैलिडिटी नहीं है.

इस तरह के सभी claims अनवेरीफाइड हैं. 

इस तरह के दावे करने वाले लोगों की सोच के पीछे जो सबसे बड़ा लॉजिक होता है वह यह के करेला कड़वा है, और शक्कर मीठी है, तो करेले की कड़वाहट शरीर में शक्कर को न्यूट्रलाइज कर सकती है.

लेकिन कोई भी व्यक्ति जो ह्यूमन फिजियोलॉजी (human physiology) और बायोलॉजी को समझता है वह जानता है कि यदि इस तरह से मानवीय शरीर में ब्लड ग्लूकोस की मात्रा को कम किया जा सकता तो आज दुनिया में कोई भी व्यक्ति ना तो मोटा होता और ना ही उसे टाइप टू डायबिटीज टाइप वन डायबिटीज या जस्टिस डायबिटीज की शिकायत होती

यहां यह कहना जरूरी है कि जहां इस तरह के दावे अर्थहीन हैं वही यह बात सच है कि करेला एक बहुत ही अच्छी सब्जी है इसमें लगभग 225 अलगअलग मेडिसिनल मॉलिक्यूल पाए जाते हैं, और इन माइक्रोन्यूट्रिएंट्स का हमारी सेहत पर अच्छा प्रभाव ही पड़ता है.

इन्हीं मॉलिक्यूल और compounds की वजह से आज ऐसे कई एक्सपर्ट्स हैं जो यह मानते हैं कि 1 दिन करेले में से डायबिटीज या ब्लड शुगर का कोई न कोई इलाज जरूर निकलेगा.

लेकिन वह दिन अभी आना बाकी है.

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जहां तक मेरा अपना सवाल है मैं खुद इस कड़वी सब्जी का बहुत बड़ा फैन हूं. मैं एक ऐसे घर में पला और बढ़ा जहां यह सब्जी काफी फ्रिक्वेंटली बनाई जाती थी. इसकी कई रेसिपी बनती थी; एक थी प्याज के साथ करेले की सब्जी. दूसरी थी खट्टा मीठा करेला जिस में करेले को कच्चे आम और इमली और गुड़ के साथ मिलाकर पकाया जाता था.

इसके अलावा एक और बहुत ही मशहूर रेसिपी होती थी भरवा करेले की. इसमें करेले को उसकी लंबाई में काटकर उसमें फ्राइड अनियंस भरे जाते थे और बाद में उसे सिलाई के धागे लपेट कर शैलो फ्राई किया जाता था.

मैं करेला आज भी खाना पसंद करता हूं लेकिन इसलिए नहीं कि वह डायबिटीज की बीमारी को रोक देता है या ब्लड शुगर कम करता है, बल्कि इसलिए क्योंकि उसका टेस्ट अच्छा होता है, और उसमें कई विभिन्न प्रकार के माइक्रोन्यूट्रिएंट्स पाए जाते हैं, जो कि हमारी सेहत को किसी न किसी लेवल पर सपोर्ट करते हैं.

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Laurie David

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